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हंगामा है क्यूँ बरपा

akbar illahabadi• अकबर इलाहाबादी

जन्म: 16 नवम्बर 1846
निधन: 9 सितम्बर 1921

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़[1] की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है
उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद[2] है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है
वां[3] दिल में कि दो सदमे,यां[4] जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है
हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही[5] से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है
सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत[6] के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है
शब्दार्थ: [1] धर्मोपदेशक, [2] मनोरथ, [3] वहाँ,
[4]↑ यहाँ, [5] दैवी प्रकाश. [6] ↑ प्रकृति

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